हमास और इज़राइल के बीच जारी युद्ध ने मध्य पूर्व में गंभीर संकट पैदा कर दिया है। 18 मार्च 2025 को इज़राइली वायु सेना ने गाजा पट्टी में बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए, जिसमें 241 लोग मारे गए और 382 से अधिक घायल हो गए। इन हमलों का उद्देश्य हमास के ठिकानों को निशाना बनाना था, लेकिन स्थानीय नागरिकों का दावा है कि इज़राइली सेना ने आवासीय इलाकों को भी नुकसान पहुँचाया। गाजा में पहले से ही बिजली और जल आपूर्ति संकट गहरा चुका है, और लगातार हो रही बमबारी ने आम लोगों के जीवन को और कठिन बना दिया है। इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस हमले का बचाव करते हुए कहा कि जब तक हमास पूरी तरह समाप्त नहीं होता, तब तक सैन्य अभियान जारी रहेगा।
दूसरी ओर, हूती विद्रोहियों ने एक अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक जहाज पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए, यह दावा करते हुए कि वे फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के समर्थन में ऐसा कर रहे हैं। इसके अलावा, हूती समूह ने इज़राइली ठिकानों को भी निशाना बनाने का दावा किया, लेकिन इज़राइल ने कहा कि उसकी वायु रक्षा प्रणाली ने अधिकांश मिसाइलों को रास्ते में ही नष्ट कर दिया। यह घटनाएँ इस बात का संकेत देती हैं कि यह संघर्ष केवल गाजा तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे क्षेत्र में फैल सकता है।
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई ने कहा कि हमास और हिज़्बुल्लाह का प्रतिरोध यह दर्शाता है कि इज़राइल कमजोर पड़ रहा है। ईरान ने यह भी स्पष्ट किया कि वह फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध समूहों को समर्थन देता रहेगा। अमेरिका ने इज़राइल के “आत्मरक्षा के अधिकार” का समर्थन किया लेकिन नागरिकों की बढ़ती मौतों पर चिंता भी जताई। अमेरिका ने इज़राइल से संयम बरतने की अपील की और कूटनीतिक वार्ता की जरूरत पर बल दिया।
रूस और चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में संघर्ष विराम प्रस्ताव का समर्थन किया। रूस ने इज़राइली हमलों की निंदा की और इसे “मानवाधिकारों का उल्लंघन” बताया, जबकि चीन ने इस युद्ध को रोकने के लिए “दो-राष्ट्र समाधान” पर ज़ोर दिया। यह स्पष्ट है कि यह संघर्ष न केवल इज़राइल और हमास तक सीमित है, बल्कि इससे अंतरराष्ट्रीय राजनीति भी प्रभावित हो रही है।
गाजा में हालात बदतर होते जा रहे हैं। अस्पतालों में ज़रूरी दवाओं की कमी हो रही है, और घायल नागरिकों के लिए पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। खाद्य आपूर्ति बाधित हो चुकी है और लाखों लोग भुखमरी के कगार पर हैं। संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवीय संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर तत्काल संघर्ष विराम नहीं हुआ तो यह क्षेत्र एक बड़े मानवीय संकट में बदल सकता है।
इस युद्ध की भयावहता केवल हताहतों की संख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव पूरे मध्य पूर्व में महसूस किया जा रहा है। इस्लामी देशों में इज़राइल विरोधी प्रदर्शनों की लहर उठी है, जबकि पश्चिमी देशों में इज़राइल के समर्थन और विरोध में बहस तेज हो गई है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि क्या यह युद्ध किसी निर्णायक मोड़ पर पहुँचता है या फिर यह संघर्ष और भड़कता है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता को और खतरा हो सकता है।
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